Monday, March 8, 2010

किताबों की दुनिया - 25

मित्रो आज जिस किताब का जिक्र करने का मन है उसे चुनने के पीछे दो कारण हैं. पहला तो ये के अब तक की पुस्तक चर्चा में हमने सिर्फ और सिर्फ शायरों की किताबों की ही बात की है किसी शायरा की किताब की चर्चा नहीं की और आज महिला दिवस के शुभ अवसर पर किसी शायरा की किताब की बात करने का हमें इस से बेहतर मौका और कब मिलता दूसरा इस से भी बड़ा कारण है इस किताब के मुख्य और अंतिम पृष्ठ पर लिखे ये लाजवाब शेर जिन्होंने मुझे इस पुस्तक को पढने के लिए उकसाया :

हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
***
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं
हम छलनी में पानी भरने निकले हैं

होठों पर तो कर पाए साकार नहीं
चित्रों पर मुस्काने धरने निकले हैं

ये ही नहीं,ऐसे ही खूबसूरत अशआरों से भरी इस किताब का शीर्षक है "तुम्ही कुछ कहो ना" और इसे लिखा है डा.कविता किरण जी ने जो अपना एक ब्लॉग डा. कविता 'किरण' (कवयित्री) के नाम से चलातीं हैं. इस ब्लॉग में आप उनकी ग़ज़लों और एवं अन्य काव्य रचनाओं को समय समय पर पढ़ सकते हैं. मैं कविता जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे ये किताब पढने और आप सब के सम्मुख प्रस्तुत करने का मौका दिया.


किरण जी कहती हैं "ग़ज़ल एक किरदार नहीं, कायनात है, जिसमें एक शायर अपनी साँसों को शेरों की तरह बुनता है. कभी महबूब के ख्वाबों से सजाता है तो कभी हकीक़त से रु-ब-रु होने की कोशिश करता है." हकीकत से रु-ब-रु होने की कोशिश उनके इन शेरों में साफ़ झलकती है:

एक ही छत के नीचे थीं दोनों की दुनिया अलग अलग
अपने ही घर में बरसों तक बन कर के मेहमान रहे

नहीं पता था उन्हें हमारा हमको उनकी खबर न थी
इक दूजे की खातिर केवल जीने का सामान रहे

मन पर लादा मौन साध इक अनचाहे रिश्ते का बोध
ना निगला ना उगला उसको बस करते विषपान रहे

प्रसिद्द गीतकार 'मानिक वर्मा' जी ने इस पुस्तक में कहा है "कविता किरण जी ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है. ग़ज़लों में हर शेर अपनी शेरियत के साथ उपस्थित है. हमारे आस पास के जीवन मूल्यों को बड़े सहज और सरल शब्दों में रखने का उनका भागीरथी प्रयास अत्यंत मूल्यवान है. बस आप सुधि पाठकों से निवेदन है आप हर शेर को जरा ठहर ठहर कर पढ़ें निश्चित ही आपका पूरा दिन गीत- गीत हो जायेगा ."

दोस्त ! तू जो बेवफा हो जायेगा
ज़िन्दगी में क्या नया हो जायेगा

क्या तेरे तानों से इक बेरोज़गार
अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा

आंसुओं की शाम मत तोहफे में दो
आज फिर इक रतजगा हो जायेगा


कविता जी ने अपनी कुछ ऐसी ग़ज़लें कहीं हैं जो सिर्फ और सिर्फ एक स्त्री ही कह सकती है. स्त्री जो माँ है. ऐसे अशआर और कहीं शायद ही पढने को मिलें, आप भी मुलायजा कीजिये:

मुझको अक्सर मेरे अन्दर से बुलाती है जो
नन्हें मुन्ने किसी बच्चे की सदा लगती है

याद आते हैं क्यूँ बचपन के खिलौने फिर से
मैं बताऊँ तो, मगर मुझको हया लगती है

है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है

पूर्व सांसद और प्रसिद्द कवि बाल कवि बैरागी जी कहते हैं "किरण की ग़ज़लों का लक्ष्य आपका मनोरंजन करना नहीं है.आपको समझ के साथ विचार सागर की लहरों पर बिठा कर ये सोचने पर विवश कर देना कई कि "हाँ ये बात बिलकुल ठीक है". ये एक साहित्यिक, सारस्वत, शालीन, मनोलोक का भ्रमण है.

ज़िन्दगी में तनाव मत रखिये
इतना मरने का चाव मत रखिये

दुश्मनी कौन फिर निभाएगा
दोस्तों से दुराव मत रखिये

बेवज़ह बहस से जो बचना हो
अपना कोई बचाव मत रखिये

रूह जिंदा रहे ज़रूरी है
जिस्म का रख रखाव मत रखिये

विलक्षण प्रतिभा की स्वामी फालना, राजस्थान निवासी किरण जी की आठ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और पांच पुस्तकें प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं. आपने ग़ज़ल के अलावा कवितायेँ लघु कवितायेँ और बाल गीत भी लिखे हैं . आप का लिखा राजस्थानी ग़ज़ल संग्रह पुरस्कृत भी हुआ है. किरण जी ने ढेरों सम्मान भी अर्जित किये हैं जिनमें उज्जैन का टेपा सम्मान, रोटरी क्लब गैगटोक द्वारा दिया गया सम्मान, राजस्थानी सेवा सम्मान और हिंदी साहित्य संगम पुरस्कार बोकारो स्टील , प्रमुख हैं. आपने दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले से भी काव्य पाठ किया है.

देखेंगे जिस और कुआँ मुड जायेंगे
कोई धर्म नहीं होता है प्यासों का

ना होते हैं ख़त्म न ही कम होते हैं
जीवन कितना लम्बा है संत्रासों का

इश्वर - अल्लाह हैं तो आ जाएँ वरना
क़त्ल नहीं हो जाये पांच पचासों का

आकांशा प्रकाशन फालना द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को प्राप्त करने के लिए सबसे श्रेष्ठ तरीका तो ये रहेगा की आप स्वयं किरण जी से उनके मोबाईल 09414523730 पर संपर्क करें या उन्हें सीधे kavitakiran2008@gmail.com पर लिखें. वो आपको इस पुस्तक की प्राप्ति का सबसे आसान रास्ता बतायेंगी.

उम्मीद है आपको इस श्रृंखला में प्रस्तुत पहली शायरा के अशआर पसंद आये होंगे...अपनी प्रति क्रियाएं अगर यहाँ देने में आपको कोई संकोच हो तो आप अपने उदगार किरण जी तक जरूर पहुंचाएं.

अभी इतना ही...जल्द ही मिलते हैं एक नयी पुस्तक के साथ.

39 comments:

Apanatva said...

ise jankaree ke liye dhanyvad .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आदरणीय नीरज जी, आदाब

नहीं पता था उन्हें हमारा हमको उनकी खबर न थी
इक दूजे की खातिर केवल जीने का सामान रहे

है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है

आज महिला दिवस पर.. आपने
.डां कविता किरण जी के कीमती कलाम का तोहफ़ा दिया है.

शारदा अरोरा said...

वाह , दिन गीत गीत क्या , दिल बाग बाग हो गया है | बहुत सुन्दर तोहफा है

kshama said...

Wah! Bahut gazabki shayarase ru-b-ru karaya aapne!

vandana gupta said...

neeraj ji

hamesha ki tarah sagar mein se moti chunte hain ...............wakai tarif ke liye shabd kam pad rahe hain.............aabhar.

संजय भास्‍कर said...

आज महिला दिवस पर.. आपने
.डां कविता किरण जी के कीमती कलाम का तोहफ़ा दिया है.

सागर said...

Sundar, Neeraj Ji.

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
आज के दिन के लिए इस से बेहतर और क्या हो सकता था...........
डा.कविता किरण जी के लफ़्ज़ों का जादू ही है जो हर शेर को बार बार पढने पे मजबूर कर रहा है, चाहे वो
हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है

या फिर ये शेर हों...........................

नहीं पता था उन्हें हमारा हमको उनकी खबर न थी
इक दूजे की खातिर केवल जीने का सामान रहे
***********
दोस्त ! तू जो बेवफा हो जायेगा
ज़िन्दगी में क्या नया हो जायेगा
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याद आते हैं क्यूँ बचपन के खिलौने फिर से
मैं बताऊँ तो, मगर मुझको हया लगती है
*************
है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है

सुशील छौक्कर said...

किरण जी लिखे शेर पसंद आए।
देखेंगे जिस और कुआँ मुड जायेंगे
कोई धर्म नहीं होता है प्यासों का
......................

बेहतरीन।

सुशीला पुरी said...

आपका तरीका बिल्कुल अलहदा है .....अच्छा लगा .

सतपाल ख़याल said...

मन पर लादा मौन साध इक अनचाहे रिश्ते का बोध
ना निगला ना उगला उसको बस करते विषपान रहे
bahut khoob ! yeh baRee khushii ki baat hai ki internet par ab shayiroN ka ek kunba ban chuka hai aur mehfileN sajne lageeN haiN.

सुनील गज्जाणी said...

neeraj ji ,pranam,
aap ke madyam se kavita ji ki naye kriti ka pata chala, aap ko aur kavita ji ka bahut bahut badhae,

निर्मला कपिला said...

आज महिला दिवस पर अच्छा तोहफा दिया है आपने। कविता जी के गज़लें बेहद पसंद आयी और पुस्तक पढने की उत्सुकता बढ गयी। कविता जी को बहुत बहुत बधाई। आपका धन्यवाद्

डॉ टी एस दराल said...

आज महिला दिवस पर महिला गज़लकार को प्रस्तुत कर के बढ़िया काम किया है आपने ।
बहुत बढ़िया लगे सभी शेर ।
आभार।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब और सामयिक पोस्ट, शुभकामनाएं.

रामराम.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
***
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं
हम छलनी में पानी भरने निकले हैं

होठों पर तो कर पाए साकार नहीं
चित्रों पर मुस्काने धरने निकले हैं
..ये तीनों शेर लाजवाब हैं.

shikha varshney said...

हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है

waaaaaah ..kamal likha hai...aabhar Neeraj ji itna pyaara tohfa ddene ke liye.

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छा व्यक्तित्व-अच्छी रचना-अच्छा परिचय.

haidabadi said...

जनाब नीरज भाई
इस बार फिर आपने "कविता किरण" रूपी एक हीरे की किरण को
मुख़ातिब करवाया है क़िबला कद्र दान जौहरी हैं आप
किरण साहिबा का ख़ुश बयां कलाम पाकीज़ा है
बाहुनर और दानिशवर कवित्री काबिले तारीफ है

चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

Manish Kumar said...

shukriya ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया!

नारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!

"अर्श" said...

क्या तेरे तानों से इक बेरोज़गार
अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा

is she'r ne jhakjhor ke rakh diyaa hai kavita ji ka ... waah badhaayee


arsh

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

हमने हाल ही में इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में कविता किरन जी को सुना था। अशोक चक्रधर जी के साथ पधारी किरन जी ने ्बहुत प्रभावित किया था।

इतनी बढ़िया पोस्ट के माध्यम से किरन जी का परिचय कराना आपकी नेकदिली और काव्यसाहित्य के प्रति अनुपम अनुराग को प्रदर्शित करता है।

वीनस केसरी said...

नीरज जी नमस्कार,
एक एक करके शेर पढता गया और हर शेर पर दिल से आवाज आयी कि हाँ ये वो शेर है जिसे कमेन्ट में कोट किया जाए और ये स्थति है बिना कोई शेर कोट कियी अपनी बात रख रहा हूँ :)

नीरज जी मुझे सबसे बड़ा अफसोस ये है कि आज तक किरण जी के ब्लॉग से अनजान रहा और आज तक एक बार भी उनके ब्लॉग और उनकी गजलों को पढ़ नहीं पाया था

ये मुझे कुछ अजीब भी लगा क्योकी मई तो चुन चुन कर गजले पढता रहता हूँ और आपकी , अर्श भाईऔर गौतम जी के द्वारा अनुसरित ब्लॉग के अपडेट को चेक करता रहता हूँ :)

खैर भूल सुधार कर लिया है अब तो किरण जी का ब्लॉग फालो कर लिया है

किताबों की दुनिया का ये अंक वास्तव में विशेष है

Udan Tashtari said...

कोशिश करते हैं किताब प्राप्ति की...आपने तो उत्कंठा जगा दी..

...आभार इस समिक्षा के लिए.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

डां कविता किरण जी के अशआर से रु-ब-रु कराया आपने. शुक्रिया.

इस्मत ज़ैदी said...

नमस्कार ,नीरज जी ,
आप के सौजन्य से इतने उमदा अश’आर पढ़ने को मिले ,किसी एक शेर की तारीफ़ करना बहुत मुश्किल है ,हर शेर अपने आप में जज़्बात और तजुर्बात की दुनिया समेटे हुए है ,
बहुत बहुत धन्यवाद

रविकांत पाण्डेय said...

आदरणीय नीरज जी,

बहुत-बहुत धन्यवाद किरण जी से परिचय करवाने के लिये। जो शेर आपने छांटे हैं उसे पढ़ने के बाद कौन है जो पूरी किताब पढ़े बिना रूक सकता है!!! आनंद आ गया।

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया और लाजवाब पोस्ट रहा! कविता जी से रूबरू करवाने के लिए धन्यवाद!

Satish Saxena said...

आज तो गागर में सागर भर दिया भाई जी ! आनंद आ गया !

शरद कोकास said...

मंच के कवियों की रचनायें जब पुस्तकाकार मे आती हैं तो उन्हे ज़्यादा करीब से जानने का अवसर मिलता है । किरण जी को इस पुस्तक के लिये बधाई ।

daanish said...

sabhi ash`aar padh kar
dili sukoon haasil huaa
majmooe ke liye abhi
darkhwaast daal rahaa hu jiiii
aabhaar .

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

neraji ji meri kitab aur mere sher itne sare adeebon ne pasand kiye dekhker bahut abhibhoot hun.kuch achhe sher mujhse bhi ho gaye janker dili khushi ho rahi hai.main yahan sabhi tippanikaron ka tahe-dil se shukriya ada karna chahti hun aur yaqeen dilati hun ki aap sabki housla-afzahi se meri kalam aur pukhta hogi aur mere ashaar aur bhi ziyada khoobsurti se ubharkar baher aayenge.shukriya neeraj ji mere lekhan ko sab tak pahunchane ka.

गौतम राजऋषि said...

ये हमारी लाइब्रेरी में नहीं है नीरज जी और शुक्रिया आपका किरण जी से परिचय करवाने का, वर्ना इस "चांद धरती पे उतरता कब है" के अंदाज़ रखने वाली इस अद्‍भुत शायरा से जाने कब तक नहीं मिल पाते। अब देखिये ना ये वाला शेर भी तो एक कोई शायरा ही कह सकती हैं।

जल्द ही जुगत भिड़ाता हूँ इस किताब को भी अपनी लाइब्रेरी में शामिल करने हेतु।

Asha Joglekar said...

नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं वाले जज्बे की शायरा का परिचय महिला दिवस पर देकर आपने हमारा महिला सप्ताह भी गीतों भरी कहानी कर दिया ।
आभार

तिलक राज कपूर said...

आपकी प्रस्‍तुति का अंदाज़ आकर्षित कर रहा है कि मैं भी बुरका पहन कर अगली प्रस्‍तुति के लिये आ जाउँ, लेकिन उससे होगा क्‍या? मेरी तो कोई किताब अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है, लिखेंगे क्‍या?खैर ये तो अभी होली की खुमारी का असर है। प्रस्‍तुति बहुत जानदार है। आपने जितना प्रस्‍तुत किया उससे बड़े अच्‍छे प्रयोग सामने आये, और फिर जिस शायरा पर मानिक वर्मा जी और बालकवि बैरागी जी ने कुछ कहने का समय निकाला उसे पढ़ना तो बनता है।

Roshani said...

मुझको अक्सर मेरे अन्दर से बुलाती है जो
नन्हें मुन्ने किसी बच्चे की सदा लगती है


याद आते हैं क्यूँ बचपन के खिलौने फिर से
मैं बताऊँ तो, मगर मुझको हया लगती है


है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है

Bahut hi sundar...

Shishir Pandit said...

hi aapki yaha kavitaye padh kar achcha laga aap jaise khubsoorat hei waise hi aap khubsoorati se kavitaye likhte hei aapki rachnao ko padh kar aisa lagta hei mano yeh mei khud kaha raha hu ............ iss tarah ki achchi kavitao ke liye bahut bahut badhai and best og luck...............

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

http://aakharalakh.blogspot.com/2010/09/blog-post_05.html