Monday, April 28, 2014

किताबों की दुनिया -94


सावन को जरा खुल के बरसने की दुआ दो 
हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो 

मन मार के बैठे हैं जो सहमे हुए डर से 
उन सारे परिंदों को चहकने की दुआ दो 

वो लोग जो उजड़े हैं फसादों से, बला से 
लो साथ उन्हें फिर से पनपने की दुआ दो 

जिन लोगों ने डरते हुए दरपन नहीं देखा 
उनको भी जरा सजने संवारने की दुआ दो 

अपने अशआर के माध्यम से ऐसी दुआ करने वाले शायर को फरिश्ता, फकीर या नेक इंसान ही कहा जायेगा । शायर अवाम का होता है और सच्चा शायर वो है जो अवाम के भले की सोचे , अवाम को सिर्फ आईना ही नहीं दिखाए उनके जख्मों पे मरहम के फाहे भी रखे और उन्हें जीने का सलीका भी समझाए ।

जीना है तो मरने का ये खौफ मिटाना लाज़िम है 
डरे हुए लोगों की समझो मौत तो पल पल होती है 

कफ़न बांध कर निकल पड़े तो मुश्किल या मज़बूरी क्या 
कहीं पे कांटे कहीं पे पत्थर कहीं पे दलदल होती है 

इतना लूटा, इतना छीना, इतने घर बर्बाद किये 
लेकिन मन की ख़ुशी कभी क्या इनसे हासिल होती है 

इन खूबसूरत अशआर के शायर हैं जनाब "अज़ीज़ आज़ाद " जिनकी किताब " चाँद नदी में डूब रहा है " का जिक्र आज हम करने जा रहे हैं। शायरी की ये किताब गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करती है.


तू जरा ऊंचाइयों को छू गया अच्छा लगा 
हो गया मगरूर तो फिर लापता हो जायेगा 

मैं न कहता था ये पत्थर काबिले-सज़दा नहीं 
एक दिन ये सर उठा कर देवता हो जाएगा 

बस अभी तो आईना ही है तुम्हारे रू-ब-रू 
क्या करोगे जब ये चेहरा आईना हो जायेगा 

अज़ीज़ साहब 21 मार्च 1944 को बीकानेर, राजस्थान में पैदा हुए और थोड़े से दिन बीमार रहने के बाद 20 सितम्बर 2006 को इस दुनिआ-ऐ=फानी को अलविदा कह गए. उन की शायरी चाहे उस्तादाना रंग लिए हुए नहीं थी लेकिन वो अवाम की ज़बान के शायर थे और सीधे दिल में उतर जाने वाले अशआर कहते थे. सच्ची और खरी बात कहने में उनका कोई सांनी नहीं था चाहे वो बात सुनने में कड़वी लगे , अब आप ही देखिये ऐसी तल्ख़ बयानी आपने कहीं पढ़ी है ?

मेरा मज़हब तो मतलब है मस्जिद और मंदिर क्या 
मेरा मतलब निकलते ही ख़ुदा को भूल जाता हूँ 

मेरे जीने का जरिया हैं सभी रिश्ते सभी नाते 
मेरे सब काम आते हैं मैं किसके काम आता हूँ 

मेरी पूजा-इबादत क्या सभी कुछ ढोंग है यारों 
फकत ज़न्नत के लालच में सभी चक्कर चलाता हूँ 

 "उम्र बस नींद सी " और " भरे हुए घर का सन्नाटा " ग़ज़ल संग्रह के अलावा उनका उपन्यास "टूटे हुए लोग " , "हवा और हवा के बीच " काव्य संग्रह और "कोहरे की धूप " के नाम से कहानी संग्रह भी मंज़रे आम पर आ चुके हैं। गायक रफीक सागर की आवाज़ में उनकी ग़ज़लों का अल्बम "आज़ाद परिंदा" भी मकबूलियत हासिल कर चुका है।

इस दौर में किसी को किसी की खबर नहीं 
चलते हैं साथ साथ मगर हमसफ़र नहीं 

अपने ही दायरों में सिमटने लगे हैं लोग 
औरों की ग़म ख़ुशी का किसी पे असर नहीं 

दुनिया मेरी तलाश में रहती है रात दिन 
मैं सामने हूँ मुझ पे किसी की नज़र नहीं 

महामहिम राज्यपाल, जिला प्रशाशन, नगर विकास न्यास बीकानेर सहित कई साहित्यिक, सामाजिक व् सांस्कृतिक संस्थाओं से पुरुस्कृत व सम्मानित अज़ीज़ साहब का "चाँद नदी में डूब रहा है " ग़ज़ल संग्रह "सर्जना" , शिव बाड़ी रोड बीकानेर - 334003 द्वारा प्रकाशित किया गया है जिसे sarjanabooks@gmail.com पर इ-मेल कर मंगवाया जा सकता है। इसके अलावा अज़ीज़ साहब की रचनाओंके लिए आप जनाब मोहम्मद इरशाद , मंत्री ,अज़ीज़ आज़ाद लिटरेरी सोसाइटी मोहल्ला चूनगरान , बीकानेर -334005 पर लिख सकते हैं या 9414264880 पर फोन से संपर्क कर सकते हैं.

सिर्फ मुहब्बत की दुनिया में सारी ज़बानें अपनी हैं 
बाकी बोली अपनी-अपनी खेल-तमाशे लफ़्ज़ों के 

आँखों ने आँखों को पल में जाने क्या क्या कह डाला 
ख़ामोशी ने खोल दिए हैं राज़ छुपे सब बरसों के 

नयी हवा ने दुनिया बदली सुर संगीत बदल डाले 
हम आशिक 'आज़ाद' हैं अब भी उन्हीं पुराने नग्मों के 

साम्प्रदायिक सौहार्द और इंसानी भाईचारे के अव्वल अलमबरदार अज़ीज़ साहब की शायरी के अलम पर शहरे बीकानेर की मुहब्बत और अमन पसंदगी का पैगाम अमिट सियाही में लिखा हुआ है। उनकी एक ग़ज़ल के चंद अशआर आपकी नज़र करते हुए अभी तो आप से रुखसत होते हैं फिर जल्द ही लौटेंगे एक नए शायर की किताब के साथ।

बारहा वो जो घर में रहते हैं 
कितने मुश्किल सफर में रहते हैं 

दूर रहने का ये करिश्मा है 
हम तेरी चश्मे तर में रहते हैं 

वो जो दुनिया से जा चुके कब के 
हम से ज्यादा खबर में रहते हैं 

दूर कितने भी हों मगर 'आज़ाद' 
बच्चे माँ की नज़र में रहते हैं

12 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना मंगलवार 29 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

तिलक राज कपूर said...

इतना लूटा, इतना छीना, इतने घर बर्बाद किये
लेकिन मन की ख़ुशी कभी क्या इनसे हासिल होती है
नायाब शायरी।

Satish Saxena said...

बेहतरीन प्रस्तुति , आभार आपका !!

नीरज गोस्वामी said...

Received on mail :-

Excellent sir.....

aapk aur aapki kalam ka diwana

RAMESH SACHDEVA
(Principal)
HPS SENIOR SECONDARY SCHOOL,
SHERGARH (M.DABWALI)-125104
DIST. SIRSA (HARYANA) - INDIA
CBSE Aff. No. 530857 & School No, 20458
+91-1668-229327

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hpsshergarh.com
"A SCHOOL WHERE LEARNING & STUDYING @ SPEED OF THOUGHTS"

Naveen Mani Tripathi said...

लाजबाब पोस्ट के लिए आभार।

निवेदिता श्रीवास्तव said...

नायाब शायरी ....

निवेदिता श्रीवास्तव said...
This comment has been removed by the author.
Asha Joglekar said...

तू जरा ऊंचाइयों को छू गया अच्छा लगा
हो गया मगरूर तो फिर लापता हो जायेगा

एक और बेहतरीन शायर से मिल कर बहुत आनंद आया।

Rajeysha said...

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे


Aapne badla nahi... ye comment...
Allah aap par waise hi kafi meharbaan hai..

Onkar said...

बहुत सुंदर

प्रदीप कांत said...

लाजवाब कर दिया नीरज भाई

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

नीरज जी,क्या बात है ! बेहद उम्दा रचनाकार..... बेहतरीन समीक्षा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...इस बार मुझे आने में थोड़ी देर हो गयी...
नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)