Monday, November 26, 2012

किताबों की दुनिया-76

उनकी ये जिद कि वो इंसान न होंगे, हरगिज़ 
मुझको ये फ़िक्र, कहीं मैं न फ़रिश्ता हो जाऊं 

भूल बैठा हूँ तेरी याद में रफ़्तार अपनी 
मुझको छू दे कि मैं बहता हुआ झरना हो जाऊं 

बंद कमरे में तेरी याद की खुशबू लेकर 
एक झोंका भी जो आ जाय तो ताज़ा हो जाऊं 

फरिश्तों की तरह पाक, बहते झरनों की तरह मचलते और खुशबू की तरह महकते हुए अशआर शायरी की जिस किताब के हर पन्ने पर मिल जाते हैं उस किताब का नाम है "रौशनी महकती है " और शायर हैं जनाब " सत्य प्रकाश शर्मा". शर्मा जी शायरों की उस जमात से ताल्लुक रखते हैं जिन्हें अपना नाम बेचना नहीं आता, मंचों पर लफ्फाजी करनी नहीं आती जो अपनी ख़ुशी के लिए लिखते हैं और जिन्हें इस बात का कतई कोई मुगालता नहीं है के वो शायरी के माध्यम से कोई बहुत बड़ा काम कर रहे हैं।


मुझे रुसवा करे अब या कि रक्खे उन्सियत कोई 
तक़ाज़ा ही नहीं करती है मेरी हैसियत कोई 

कभी दरिया सा बहता हूँ कभी खंडहर सा ढहता हूँ 
मैं इंसा हूँ, फरिश्तों सी नहीं मुझ में सिफ़त कोई 

मज़ा ये है कि तहरीरें उभर आती हैं चेहरे पर 
छुपाना भी अगर चाहे, छुपाये कैसे ख़त कोई 

श्री सत्य प्रकाश शर्मा जी से मेरा परिचय करवाने का श्रेय मेरे मुंबई निवासी शायर मित्र सतीश शुक्ल 'रकीब' को जाता है। बातों बातों में उन्होंने शर्मा जी की शायरी का जिक्र किया और लगे हाथ उनसे मोबाइल पे बात भी करवा दी। पहली बात से ही दिल में घर कर गए शर्मा जी का जन्म 5 जुलाई 1956 कानपुर में हुआ, होश सँभालते ही उनका झुकाव ग़ज़लों की और ऐसा हुआ के अब तक नहीं छूटा बल्कि रोज़ के रोज़ बढ़ता ही जा रहा है गोया शायरी न हुई शराब हो गयी जो " छुटती नहीं है काफिर मुंह से लगी हुई।।" भारतीय स्टेट बैंक में उप प्रबंधक के ओहदे पर काम करते हुए शायरी और फिर शायरी की मुकम्मल किताब के लिए वक्त निकालना आसान काम नहीं होता। उसके लिए दिल में जूनून चाहिए जो उनमें भरपूर है।

इस खौफ़ से उठने नहीं देता वो कोई सर 
हम ख्वाइशें अपनी कहीं मीनार न कर दें 

मुश्किल से बचाई है जो एहसास की दुनिया 
इस दौर के रिश्ते उसे बाज़ार न कर दें 

ये सोच के नज़रें वो मिलाता ही नहीं है 
आँखें कहीं ज़ज्बात का इज़हार न कर दें 

शर्मा जी की ग़ज़लें ही अनूठी नहीं है उन्होंने जिस अंदाज़ से ये किताब अपनी पत्नी को समर्पित की है वो भी उतना ही अनूठा है वो लिखते हैं " जीवन संगिनी कृष्णा के लिए ... जो ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव में पूरे यकीन के साथ मेरे साथ खड़ी रहीं ...जिन्हें मैं इस किताब के अलावा कुछ ख़ास नहीं दे सका।

दूर कितने करीब कितने हैं 
क्या बताएं रकीब कितने हैं 

ये है फेहरिश्त जाँ निसारों की 
तुम बताओ सलीब कितने हैं 

जिसको चाहें उसी से दूर रहें 
ये सितम भी अजीब कितने हैं 

अपनी खातिर नहीं कोई लम्हा 
हम भी आखिर गरीब कितने हैं 

देश की प्रमुख पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में छपी उनकी ग़ज़लें मेरी तरह उनके बहुत से चाहने वालों की तादाद में इजाफा कर रही हैं। उन्हें अली अवार्ड (भोपाल) अमृत कलश सम्मान (गोरखपुर) और डा भगवत शरण चतुर्वेदी स्मृति सम्मान (जयपुर) से नवाज़ा गया है। ज़मीन से जुड़े इस शायर से बात करना भी कभी न भुलाए जाने वाला अनुभव है।

वफ़ा के नाम पे तुम जान देने लगते हो 
तुम्हारे शौक तो बर्बाद करने वाले हैं 

हमें पता है कि नश्तर तुम्हारे बहरे हैं 
ये ज़ख्म भी कहाँ फ़रियाद करने वाले हैं 

खबर लगी जो मुसीबत की घर से दौड़ पड़े 
ये अश्क दर्द की इमदाद करने वाले हैं 

इस किताब में शर्मा जी की 86 ग़ज़लें संगृहीत हैं, अपनी ग़ज़लों से पहले उन्होंने अपने राह्बरों और शायरी के दोस्तों का जिक्र बहुत पुर खुलूस अंदाज़ में किया है। एक़ ऐसे अंदाज़ में जो उनका अपना है। सबसे अच्छी बात है के किताब में उन्होंने किसी शायर या रहनुमा की कोई भी टिप्पणी, जिसमें अमूनन शायर और उसकी शायरी उनकी शान में कसीदे पढ़े जाते हैं, को जगह नहीं दी है। किताब में पहले उन्होंने अपने दिल की बात की है और फिर अपनी ग़ज़लों को सीधे अपने पाठकों के सामने परोस दिया है।

कातिलों में ज़मीर ढूढेंगे 
क्या महल में कबीर ढूंढेंगे 

खेल ऐसा भी एक दिन होगा 
सारे पैदल वज़ीर ढूँढेंगे 

जाँ पे बन आएगी मेरी तब तक 
जब तलक आप तीर ढूंढेंगे 

"रोशनी महकती है " को पांखी प्रकाशन, छतरपुर एंक्लेव फेज़-1, दिल्ली- 110074 ने प्रकाशित किया है , इस किताब की प्राप्ति के लिए आप +919999428213 पर फोन से या फिर paankhipublication@gmail.com पर मेल से संपर्क कर मंगवा सकते हैं। इस खूबसूरत किताब को अपने घर की लाइब्रेरी की शोभा बनाइये और इसमें प्रकाशित लाजवाब शायरी के लिए +919695531284 पर फोन कर शर्मा जी को बधाई दीजिये। एक अच्छे और सच्चे शायर की हौसला अफजाही करना हर शायरी के दीवाने का फ़र्ज़ बनता है। नयी किताब की खोज में निकलने से पहले मैं आपको उनके ये शेर और पढवाता चलता हूँ

तू ख्वाइशों से जंग का एलान कर के देख 
नुक्सान की न सोच, ये नुक्सान करके देख 

दुनिया है इक तरफ, तेर एहसास इक तरफ 
तू किस में खुश रहेगा, जरा ध्यान कर के देख 

कुछ तेरी हैसियत में चमक और आएगी 
कुछ तेरी हैसियत नहीं, ये मान कर के देख

Monday, November 12, 2012

जैसे की कोई बच्चा हँसता हो खिलखिलाकर

आप सब को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं




हर बात पे अगर वो बैठेंगे मुंह फुला कर 
रूठे हुओं को कब तक लायेंगे हम मना कर 

सच बोल कर सदा यूँ दिल खुश हुआ हमारा 
जैसे की कोई बच्चा हँसता हो खिलखिलाकर 

अपने रकीब को जब देखा वहां तो जाना 
रुसवा किया गया है हमको तो घर बुला कर 

पहले दिए हजारों जिसने थे घाव गहरे 
मरहम लगा रहा है अब वो नमक मिला कर 

गहरी उदासियों में आई यूँ याद तेरी 
जैसे कोई सितारा टूटा हो झिलमिलाकर 

माना हूँ तेरा दुश्मन बरसों से यार लेकिन 
मेरे भी वास्ते तू एक रोज़ कुछ दुआ कर 

गर खोट दिल में तेरे बिलकुल नहीं है "नीरज" 
 फिर किस वजह से करता है बात फुसफुसाकर